8/20/09

झांशीवाली रानी

सिंहासन् हिल उठे, राजवंशो भुकटी तानी थी।
बुढे भारत मे भी आई, फ़ीर से नई जवानी थी।

घुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहेचानी थी।
दुर फिरंगी यो करनी की, सबने मन मे ठानी थी।

चमक उठी सन् सत्तावन मे वह तलावार पुरानी थी।
बुन्देल हरबोलोन् के मुह, हमने सुनी कहानी थी।
खुब लढी मर्दानी वो तो झाशी वाली रानी थी।

रानी गयी सीधार चिता अब उसकी दीव्य सवारी थी।
मिला तेज से तेज, तेज की वही सच्ची अधिकारी थी।

अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नही अवतारी थी।
हम को जीवित करने आयी बन स्वंतत्रता नारी थी।

दिखा गयी पथ, सिखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी।
बुन्देल हरबोलोन् के मुह, हमने सुनी कहानी थी।
खुब लढी मर्दानी वो तो झाशी वाली रानी थी।


--- सुभद्राकुमारी चौहान

2 comments:

काय चालूये.. said...

masta kavita mitra...

subhadra-kumari chauhan rocks...

काय चालूये.. said...

masta kavita mitra..

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