2/7/10

सरस्वती वंदना

वीणा वादिनी वर दे, वर दे॥
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत मंत्र नव
भारत मे भर दे, वरदे।
वीणा वादिनी वर दे, वर दे॥

काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननी ज्योतीर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे वर दे।
वीणा वादिनी वर दे, वर दे॥

नवगति, नव लय, ताल छंद नव,
नवलकंठ, नव जलद मंद-रव;
नव नभ के नव विहग वृंद को
नव पर नव स्वर दे वर दे।
वीणा वादिनी वर दे, वर दे॥

टीप -: या रचनेचे रचनाकार कोण आहेत हे मला माहिती नाही.

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